कहते हैं कामयाबी हर महिला की किस्मत में है,जरूरत है तो बस फौलादी हौसलों के साथ चुनौती से जूझते हुए आगे बढ़ने की.यकीनन ऐसा करने वालों को एक न एक दिन जीत जरूर मिलती है और स्वर्णिम अक्षरों में लिखी जाती है इस जीत की नायाब इबारत.आज Pozitive India आपको समाज की एक ऐसी ही असल नायिका से रूबरू कराने जा रहा है जिसने अपनी अलग सोच से ये साबित कर दिखाया कि कुछ अलग करने के लिए उम्र,तजुर्बे और पैसों से ज्यादा जरूरत होती है तो सिर्फ जज्बे और जुनून की,जीत की उस जिद्द की जो आपको कई रातों तक ना सोने देती है और ना ही अपने मकसद में कामयाब होने तक रुकने देती है.
अमूमन 22-23 साल की उम्र में युवा अपने करियर के बारे में सोचना शुरू करते हैं कि वो क्या करें लेकिन इलाहाबाद की रहने वाली 23 साल की रितिका श्रीवास्तव ने कम उम्र में ही एक क्रिएटिव बिजनेस शुरू करके ये साबित कर दिया है कि उम्र प्रतिभा की मोहताज नहीं होती.आज के जिस हाईटेक दौर में युवा स्मार्ट फोन और इंटरनेट की दुनिया में खोए रहते हैं,उस वक्त रितिका ने आज के पारंपरिक व्यवसायों और नौकरी से हटकर किताबों की दुनिया में चढ़ी धूल की मोटी परतों को हटाकर किताबों और नॉवेल को नए तरीके से दोबारा लोगों के दिलों तक पहुंचाने का साहस दिखाया.
नॉवेल से लेकर स्कूल की किताबें ऑनलाइन बेचने के लिए बनाई वेबसाइट
रितिका ने सेंकेड हैंड किताबों और नॉवेल को सस्ते दामों में बेंचने के लिए एक वेबसाइट www.bookthela.com की शुरूआत की.जहां पुरानी बुक्स कम कीमत पर आसानी से मिल जाती हैं.रितिका ने एक नई शुरूआत की तो लोगों ने भी उनके इस नायाब आइडिया को हाथो-हाथ लिया.देखते ही देखते बुक ठेला वेबसाइट बहुत ही कम समय में बुक लवर्स की पहली पसंद बन गई है.इस वेबसाइट पर कुछ एकेडमिक बुक्स के साथ-साथ फिक्शन और नॉनफ्रिक्शन किताबें भी मौजूद हैं. इसके अलावा इस प्लेटफार्म पर अपनी पसंद की किताबों को विशलिस्ट में भी डालने का विकल्प मौजूद है.
फितूर जो बना सक्सेसफुल बिजनेस का फार्मूला
रितिका के मुताबिक उन्हें बचपन से ही पढ़ने का शौक था.वो बचपन से ही रोज घंटों किताबें पढ़ती थीं.उनके पास खुद की एक लाइब्रेरी भी है जिसमें 10 हजार से भी ज्यादा बुक्स का कलेक्शन है. रितिका की मानें तो इसी माहौल की वजह से उनका रीडिंग पैशन प्रोफेशन में तब्दील हो गया.पुराने दिनों को याद करते हुए रितिका बताती हैं कि पढ़ाई के दौरान हॉस्टल में टीवी ना होने के कारण उन्होंने किताबों को अपना साथी बनाया.लेकिन इस दौरान उन्होंने महसूस किया कि किताबें बेहद महंगी होने के कारण कई छात्रों की पकड़ से दूर थीं और उस वक्त कोई ऐसा प्लेटफार्म भी मौजूद नहीं था जहां छात्रों के पसंद की किताबें आसानी से एक ही जगह पढ़ने को मिल सकें.
पापा से मिला नायाब बिजनेस प्लान
दरअसल रितिका ग्रेजुएशन लास्ट सेमेस्टर के दौरान इंटर्नशिप करने के लिए कंपनी तलाश रही थीं.तभी उनके पिता (जो खुद भी एक लेखक हैं) ने उन्हें सेकेंड हैंड बुक्स ऑनलाइन बेचने का नया आईडिया सुझाया.क्योंकि उन्हें पहले से ही किताबों को लेकर रितिका के जुनून के बारे में पता था.पापा का यह आईडिया रितिका को भी खूब भाया.और साल 2017 में यहीं से शुरू हुआ बुक ठेला डॉट काम का सफर.जो आज लगातार सफलता की नई सीढ़ियों की ओर अग्रसर है.
आसान नहीं था किताबी कीड़ा से क्रिएटिव कारोबार तक का लंबा सफर
बुक रीडिंग को पैशन से प्रोफेशन बनाने तक का रितिका सफर इतना आसान नहीं रहा.ऑनलाइन बुक्स सेलिंग का काम शुरू करने से पहले उन्हें सेकंड हैंड बुक्स इकट्ठा करने के लिए काफी दूर-दराज की जगहों पर विजिट करना पड़ा.इस दौरान कई दिक्कतें भी सामने आई मगर मुसीबतों के आगे हार मानने की बजाए रितिका ने अपने आइडिया में थोड़ा बदलाव किया और हर शहर में वेंडर के जरिए किताबें ऑर्डर करके अपने बिजनेस को आसान बनाया.
अपनी मेहनत के बूते अपना नाम,पहचान और मुकाम बनाने वाली रितिका श्रीवास्तव का मानना है कि एक सफल आंत्र्योप्रेनर बनने के लिए हर इंसान के अंदर काम के प्रति दृढ़ संकल्प और धैर्य होना चाहिए.सफलता के रास्ते में रोड़े तो कई हैं लेकिन कोशिश करने वालों की उड़ान के लिए आज भी पूरा आसमान खुला है.आज भी बाजार में क्रिएटिव लोगों की जरूरत है,बशर्ते आप में आलोचनाओं से घबराए बिना कुछ नया और कुछ अलग करने का माद्दा हो.